Wednesday, August 20, 2008

"लक्षमो रे नाथ"

जैसलमेर में यूँ तो अनेकों मन्दिर हैं पर किले पर कुण्डपाड़ा स्थित भगवान श्री लक्ष्मीनाथजी के मन्दिर की छटा सबसे निराली है। होली पर भगवान को गीत गाकर सुनाये जाते हैं। यहाँ की प्राचीन परम्परा के अनुसार महारावल (जिन्हें स्थानीय लोग दरबार कहकर संबोधित करते हैं) स्वयं भगवान लक्ष्मीनाथ को होली खिलाने आते हैं। श्रीकृष्ण जन्म महोत्सव पर तो यहाँ ऐसा लगता है जैसे आज ही भगवान इस धरती पर जन्म ले रहे हों। ऐसी धारणा है कि ये मंदिर बहुत ही चमत्कारी है। मंदिर में प्रवेश करते ही भगवान की मनमोहिनी छटा कदम पीछे की ओर न जाने हेतु प्रेरित करती है। मंदिर में मिलने वाले चरनामृत और प्रसाद का स्वाद बिलकुल ही अलग होता है। प्रत्येक नगरवासी अपनी दिनचर्या प्रात:काल भगवान के दर्शन करके ही प्रारम्भ करता है। दुर्ग पर अन्य मंदिरों में शिव, सुर्य्, चामुंडा एवं जैन मंदिर प्रमुख हैं। गणगौर पर्व पर भी यहाँ बहुत ही विशाल मेला भरता है, दरबार की सवारी अपने पुरातन स्वरुप में किले से राजतिलक के बाद ही प्रस्थान करती है। कहना होगा कि आज भी यहाँ पर प्रत्येक रीति-रिवाज अपने मूल स्वरुप में ही मनाये जाते हैं। क्रमशः, जय श्रीकृष्ण


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