Wednesday, August 13, 2008

धोरां री धरती !

खम्मा घणी, सबसे पहले एक रस्म अदायगी जो हमारे राजस्थान में प्राचीन काल से चली आ रही है, एवं परम्परा भी रही है। हाँ , सही सोचा आपने "पधारो म्हारे देस" ये ही वो वाक्य है जो सुनते ही मन में किले , महल, हवेलियाँ आदि साकार हो उठते हैं। कुछ तो है जो हर किसी को यहाँ बार बार आने के लिए विचलित कर देता है। सोचो, वरना सात समंदर पार से हर साल लाखों की तादाद में सैलानी यूँ ही नहीं आते और वो भी खासकर जैसलमेर में। जैसलमेर नाम जुबान पर आते ही एक अजेय दुर्ग, एक इतिहास, एक परिवेश, एक बोली, एक लोकगीत । ऐसे न जाने कितने एक एक शब्द हैं जिनका सीधा जुडाव जैसलमेर से और यहाँ की हर वस्तु से मिलता है। आज प्रथम बार आप लोगों के बीच अपना ये प्यारा सा ब्लॉग लेकर उपस्थित हुआ हूँ सिर्फ़ इस वजह से नहीं कि इसमें मेरा कोई हित है वरन इस वजह से कि बहुत सारे पेज आज जैसलमेर के लिए इंटरनेट पर उपलब्ध हैं पर हमारी मात्रभाषा हिन्दी में विरले ही हैं जिनसे हमवतनों को इसकी खासियत पता ही नहीं है। मेरा मूल उद्देश्य भारतीयों को इसकी जानकारी देना है। इस पेज के माध्यम से मैं जैसलमेर कि हर एक कला, संस्कृति, ख़बर एक आम भारतीय को देना चाहता हूँ। आशा है आप लोगों का भी साथ मुझे अवश्य प्राप्त होगा। अपनी राय मुझे प्रेषित करें । जय श्री कृष्ण !

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